पारंपरिक और घरेलू उपायों से महिलाएं करती थी गर्भावस्था की पुष्टि

काहिरा । प्राचीन काल में महिलाएं अपने शरीर में होने वाले बदलावों के अलावा कुछ पारंपरिक और घरेलू उपायों का इस्तेमाल करके गर्भावस्था की पुष्टि करती थीं। प्राचीन मिस्र और रोम की महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले एक अनोखे तरीके में गेहूं और जौ के बीजों का उपयोग किया जाता था। इस परीक्षण में महिला के यूरिन को गेहूं और जौ के बीजों पर डाला जाता था। अगर बीज अंकुरित हो जाते थे, तो इसे गर्भवती होने का संकेत माना जाता था। यह तरीका इतना लोकप्रिय था कि वैज्ञानिकों ने 1960 के दशक में इसका अध्ययन किया और पाया कि इसकी सटीकता लगभग 70 प्रतिशत तक हो सकती है। इसके अलावा, पुराने समय में हकीम और वैद्य महिला की नब्ज देखकर भी गर्भावस्था का पता लगाते थे। वे महिला की कलाई पकड़कर उसकी धड़कनों को महसूस करते थे और मानते थे कि अगर नब्ज की गति सामान्य से तेज हो गई है, तो महिला गर्भवती हो सकती है। 

हालांकि, यह तरीका पूरी तरह से वैज्ञानिक नहीं था, लेकिन उस समय इसे एक विश्वसनीय उपाय माना जाता था। महिलाएं अपने शरीर में होने वाले बदलावों को भी गर्भावस्था का संकेत मानती थीं। इनमें पीरियड्स मिस होना, सुबह कमजोरी और उल्टी आना, अचानक थकान महसूस होना, स्तनों में बदलाव और शरीर में हल्की सूजन जैसी चीजें शामिल होती थीं। ये लक्षण आज भी गर्भावस्था के शुरुआती संकेत माने जाते हैं। इसके अलावा, कुछ पारंपरिक परीक्षणों में महिला के यूरिन को खास जड़ी-बूटियों या अन्य पदार्थों के साथ मिलाकर जांचा जाता था। अगर यूरिन का रंग बदल जाता था या उसमें कोई विशेष प्रतिक्रिया होती थी, तो इसे गर्भावस्था की पुष्टि का संकेत माना जाता था। 

घरेलू प्रेग्नेंसी टेस्ट किट का आविष्कार 1969 में हुआ था। 1971 में यह कनाडा में और 1977 में अमेरिका में उपलब्ध हुई। इस तकनीक ने महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी टेस्ट को आसान और सटीक बना दिया। आज महिलाएं घर बैठे ही अपनी गर्भावस्था की पुष्टि कर सकती हैं, जो मेडिकल साइंस की एक बड़ी उपलब्धि है। बता दें कि आज के दौर में महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी टेस्ट करना बेहद आसान हो गया है। बाजार में मिलने वाली टेस्ट किट से कुछ ही मिनटों में यह पता लगाया जा सकता है कि कोई महिला गर्भवती है या नहीं।


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