
भारतीय स्टार्टअप्स के लिए यूनिकॉर्न बनने की अवधि फिर बढ़ी
Feb 20, 2025
नई दिल्ली । देश में अनेक कंपनियों ने 1 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का जादुई आंकड़ा पार कर यूनिकॉर्न बनने का तमगा हासिल किया है। लेकिन शुरुआत में इस उपलब्धि को पाने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा। वर्ष 2019 तक जो कंपनियां यूनिकॉर्न बनीं, उन्हें यहां तक पहुंचने में औसतन 10 वर्ष लग गए लेकिन केवल चार साल बाद 2023 में यह आंकड़ा पार करने में औसत अवधि पांच वर्ष ही रही। एक शोध एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वेंचर कैपिटल (वीसी) और प्राइवेट इक्विटी (पीई) ने लाभप्रदता की ज्यादा चिंता किए बिना अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए इन कंपनियों पर जमकर नकदी का निवेश किया।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। पिछले कुछ वर्षों से जैसे-जैसे इन वीसी और पीई ने निवेश से हाथ खींचना शुरू किया तो स्टार्टअप का यूनिकॉर्न बनने का इंतजार भी लंबा होता गया और 2024 में यूनिकॉर्न का दर्जा पाने का औसत समय बढ़कर पुन: साढ़े नौ वर्ष हो गया और यह अवधि 2019 के स्तर पर पहुंच गई। एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में स्थिति इसके बिल्कुल उलट सामने आई जहां 2014 के बाद किसी स्टार्टअप को यूनिकॉर्न बनने में 3.4 वर्ष का समय लगा। इससे पहले वहां छोटी कंपनियों को इस उपलब्धि तक पहुंचने के लिए 6.6 वर्ष लग जाते थे। वैसे स्टार्टअप की दुनिया एक शोध का विषय रहा है।
स्टार्टअप के विकास के लिए 2021 का साल सबसे बेहतरीन रहा जब कॉइनडीसीएक्स, क्रेड, जेटविर्क, भारतपे और मोबाइल प्रीमियर लीग जैसे बड़े ब्रांड तीन वर्ष के अंदर ही यूनिकॉर्न बन गए। लेकिन सभी स्टार्टअप को एक जैसी तरक्की का रास्ता नहीं मिला। कुछ ऐसे भी रहे, जिन्होंने यूनिकॉर्न जैसा मील का पत्थर छूने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ा। संघर्ष से जूझते हुए आगे बढ़ने में उन्हें कारोबारी मॉडल तक बदलना पड़ा।