सुधीर आज़ाद की कलम से बना शौर्य-चित्र है ‘रणचंडी’

‘रणचंडी: रानी दुर्गावती’  रानी दुर्गावती के बलिदानी जीवन पर लिखित हिन्दी का पहला महाकाव्य है। राष्ट्रीय युवा पुरस्कार एवं मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत अन्य सम्मानों से सम्मानित नदी के कवि डॉ. सुधीर आज़ाद ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर शोधकार्य किया है। हाल ही में इस वर्ष 24 जून को वीरांगना रानी दुर्गावती का 500 वां बलिदान दिवस (24 जून) मनाया गया है। यह एक सुखद संयोग है कि इसी वर्ष डॉ. सुधीर आज़ाद का रानी दुर्गावती पर लिखा महाकाव्य या रहा है। 

किसी राष्ट्र की संस्कृति कला एवं साहित्य उसकी आत्मा होती है। राष्ट्रीय एकता की आधारशिला है सांस्कृतिक एकता और सांस्कृतिक एकता का सबसे प्रबल माध्यम साहित्य है। साहित्य की काव्य विधा की परिधि के अन्तर्गत प्रबंधकाव्यों का विशेष महत्व है, जिनके वृहत् कलेवर में राष्ट्रीय एकता को प्रभावी रीति से प्रतिफल करने का पूर्ण अवसर रहता है। प्रबंध काव्य वह काव्य होता है जिसमें एक कथा का सूत्र विभिन्न छंदों के माध्यम से जुड़ा रहता है। प्रबन्ध काव्य में कोई प्रमुख कथा काव्य के आदि से अंत तक क्रमबद्ध रूप में चलती है। कथा का क्रम बीच में कहीं नहीं टूटता और गौण कथाएँ बीच-बीच में सहायक बन कर आती हैं। 

‘रणचंडी: रानी दुर्गावती’  प्रबंध काव्य के सम्पूर्ण साहित्यिक मापदंडों पर खरा उतरता है।  इसका भावपक्ष, कलापक्ष एवं कथावस्तु इसे विशिष्ट बनाते हैं। आत्मोत्सर्ग की एक ऐसी गाथा जो पाँच सौ बरस से जीवंत बनी हुई है और आज भी उसी भावोत्तेजना के साथ दोहराई जाती है; वह गाथा है मातृभूमि की रक्षा में प्राणों का बलिदान कर अपने रक्त से राष्ट्राभिमान की नई परिभाषा लिखने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती की। रानी दुर्गावती का बेजोड़ शौर्य, अप्रतिम देशप्रेम, साहस, शासन-निपुणता, निडरता एवं  प्रजा वात्सल्यता का भाव उन्हें भारतीय इतिहास की सबसे गौरक्षाली नारी योद्धा के रूप में स्थापित करता है। अपने देश-धर्म का पालन करते हुए सर्वस्व समर्पित करने के रानी दुर्गावती के प्रण एवं संघर्ष के कारण आज भी उनकी कीर्ति सम्पूर्ण भारतवर्ष में है।

डॉ. सुधीर आज़ाद की कलम भारतीयता के बोध से संपृक्त तो है ही साथ ही वह उन मूल्यों एवं आदर्शों से संस्कारित भी है जो नई पीढ़ी के समक्ष हमारे भारतीय नायक एवं  नायिकाओं के चरित्रों को प्रस्तुत करने में न केवल समर्थशील है बल्कि पूर्णतः सफल भी है। ‘रणचंडी:रानी दुर्गावती’ डॉ. सुधीर आज़ाद का एक प्रबंधकाव्य  आया है जो रानी दुर्गावती के विराट व्यक्तित्व पर लिखा गया है। मध्यभारत की इस वीराङ्गना की शौर्य-गाथा सारे राष्ट्र के लिए प्रेरणा का अमर स्तम्भ है, जिसने अपने अभूतपूर्व पराक्रम एवं साहस से मुगलों को न केवल तीन बार पराजित किया बल्कि उन्हें को भारतीय नारी की अस्मिता से परिचित कराया और यह भी समझाया कि क्यों भारतीय नारी का एक अतिविशिष्ट रूप चंडी कहा जाता है। डॉ. सुधीर आज़ाद ने अधीनता का प्रतिकार कर  युद्ध का जयघोष करने वाली रानी दुर्गावती के शौर्य का जो चित्र खींचा है वह तत्कालीन गौरव एवं संघर्ष की सजीव चेतना स्पंदित करता है। 

‘भवानी’, ‘आविर्भाव’, ‘विराट बाल्यकाल’, ‘अभ्यास’, ‘प्रस्फुटन’, ‘दुर्गावती’, ‘उत्सव’, ‘नियति’, ‘कर्त्तव्य’, ‘गुरु’, ‘माँ नर्मदा’, ‘नारी अस्मिता का उत्कर्ष’, ‘संघर्ष’, ‘रणचंडी’, ‘शौर्य’, ‘आत्मोत्सर्ग’, ‘गढ़-मंडला’ एवं ‘प्रणति’ जैसे काव्य-खंडों के माध्यम से डॉ. सुधीर आज़ाद ने इस प्रबंधकाव्य  में रानी दुर्गावती के सम्पूर्ण जीवन जो जिस तरह प्रवाह दिया है उसकी गति इतनी सधी हुई और सहजता लिए है कि रानी दुर्गावती का व्यक्तित्व सीधे अंतस पर उतर जाता है और अपने सम्पूर्ण प्रभाव के साथ परिलक्षित भी होता है। ‘भवानी’ शीर्षक की यह पंक्तियाँ देखिए- 

“भारतीय-बोध से संपृक्त और अभिमंत्रित है जो 

शौर्य अवलम्बित है जिसमें, शौर्य पर अवलंबित है जो 

कल भी जो गर्व था भारत का, आज भी भारत गर्वित है जो!

गोंडवाना की भवानी  रानी दुर्गावती है वो!”


‘दुर्गावती’ शीर्षक में आई यह पंक्तियाँ रानी दुर्गावती के अद्भुत एवं विराट चरित्र का बखूबी चित्रण करती है और ऐसा लगता है मानो कोई चित्र बना दिया हो- 

“वो स्वाधीनता को धर्म समझती थी 

वो संघर्षों को कर्म समझती थी! 

दुर्गावती असीम हितकारी थी 

वो महान हिन्द की नारी थी!” 


‘नियति’ शीर्षक में आई यह पंक्तियाँ रानी के जीवन के घटनाक्रम के साहित्यिक विवरण की प्रष्ठभूमि प्रतीत होती हैं- 

“बड़े मंच पर बड़े चरित्र का  जब मंचन करना होता है

नेपथ्य को सबसे पहले उस स्तर का बनना होता है।” 


‘कर्त्तव्य’ नामक काव्य-खंड सरल शब्दों में गहन अर्थ लिए है- 

‘कर्त्तव्य परित्याग की प्रसव क्रिया से उपजता है!’

कर्त्तव्य का स्वभाव सहज है 

क्योंकि यह निःस्वार्थ हृदय की उपज है। 


‘माँ नर्मदा!’ काव्य-खंड में  सुधीर आज़ाद ने भारतीय दर्शन के उस अध्याय की संदर्भ व्याख्या की है जिसकी आस्थाओं में नदियाँ हमारी माता के समान हैं और हमारे जीवन का आधार हैं - 

असंख्य युगों से बहती माँ!

धरती माँ का वात्सल्य हो 

तुम्हारा स्पर्श जीवन स्पंदन है!

तुममें बहता मानव-दर्शन है!”


नारी सम्मान एवं संमंत का स्वर भी इस खांकवी की अनुपम विशेषता है। भारतीय नारी के सामर्थ्य, शक्ति एवं उसके शौर्य से बहुगुणित एवं सुसज्जित उसकी सामाजिक-राजनैतिक प्रतिष्ठा के आदर्श बिन्दुओं का साक्षात्कार करना है तो रानी दुर्गावती इसका अद्वितीय उदाहरण हैं।‘स्वराज’ में रानी दुर्गावती के इन्हीं गुणों का वर्णन बहुत ही सरलता के साथ आया है- 

लोकहित व्यवस्था का निर्णय है स्वराज 

और उस निर्णय का सुनिश्चय है स्वराज 

स्व-चेतना, स्व-भाषा, और स्व-संस्कृति 

भारत महान का प्रथम परिचय है स्वराज! 


रानी दुर्गावती ने अपने शौर्य की टंकार और हुँकार से शत्रुओं को भयक्रान्त करते हुए मृत्यु की देवी का वरण कर स्वर्णाक्षरों से भारतीयता के गौरव नक्षत्र को सुशोभित किया है।‘शौर्य’ काव्य-खंड में यह भवन सजीव हो उठी है- 

एक ही इकाई में जैसे वो सृजन 

और विनाश की शक्ति का प्रतीक

एक ही इकाई में पोषण करने वाली

और भक्षण करने वाली का प्रतीक!


रानी दुर्गावती का सम्पूर्ण जीवन किसी दैदीप्यमान यज्ञ की भाँति है। उनका जीवन राष्ट्रहित अनुष्ठान है। वे वीरता की परिभाषा और स्व-चेतना की पराकाष्ठा हैं, जिन्होंने दुर्गावती की अर्थवत्ता को भारतीयता की नस-नस में प्रवाहित कर दिया। 

‘आत्मोत्सर्ग’ काव्य-खंड की इन पंक्तियों में सुधीर आज़ाद इसी आत्माभिमान को अभिव्यंजित करते हैं- 

जिसने पराधीनता के बदले आत्मोत्सर्ग का मार्ग चुना 

जिसने असंख्य भारतीयों में किया स्वाभिमान बहुगुणा। 

चौबीस जून सब पंद्रह सौ चौसठ रानी दुर्गावती का आत्मोत्सर्ग 

गर्व करेगा प्रत्येक भारतीय और स्मरण करेगा भारतवर्ष!


प्रबंधकाव्य  में रानी दुर्गावती का महानायिका के रूप में सफल चित्रण हुआ है और वह इस प्रबंधकाव्य  की गरिमा को बहुगुणित करता हुआ उनके धीर-वीर और ओज से परिपूर्ण चरित्र को अपने वृहद रूप से पाठकों के सम्मुख उपस्थित करता है। जब आप अग्नि जैसे चरित्र को लिखते हैं तो आपकी कलम ठंडी नहीं होनी चाहिए। डॉ. सुधीर आज़ाद की कलम में वह धधक है जो इस प्रबंधकाव्य  को पढ़ते हुए समानांतर हमारे हृदय में दहकती है और हमें भी तपाती है। 

इस प्रबंधकाव्य  की भाषा गति भावों एवं विचारों की प्रस्तुति के पूर्णतः अनूकूल है।  इस प्रबंधकाव्य  की भाषा का सौन्दर्य यह है कि कवि बहुत तेज़ बहती हुई भाषा प्रसंगानुसार आपके अंतस में ठहर भी जाती है। संस्कृतनिष्ठता लिए हुए भी भाषा सरल है यह वाक़ई अद्भुत है। प्रबंधकाव्य  में चित्रित किए गए गतिशील एवं संवेदनशील चित्रों तथा उसकी रस-निष्पत्ति का आधार होते हैं; इस प्रबंधकाव्य  में यह प्रभावी रूप से आया है साथ ही भावों के अनुकूल छन्दों, शब्दों, भाषा, शैली एवं अलंकारों की योजना के आधार पर प्रबंधकाव्य का भावपक्ष और अधिक प्रभावोत्पादक हो गया है। भावपक्ष एवं कलापक्ष की दृष्टि से यह प्रबंधकाव्य  निःसंदेह उत्कृष्ट है।

राष्ट्रीय साहित्य में डॉ. सुधीर आज़ाद के योगदान को रेखांकित किया बिना हम इसे पूरी तरह प्रस्तुत नहीं कर सकते। वे निरंतर इस यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे हैं। उन्हें शुभकामनाएँ।


- बसंत ऋतुराज 
     कवि एवं लेखक, अमरवाड़ा

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