1960 में हुए परमाणु परीक्षण, 2022 की धूल में मिले उसके रेडियोएक्टिव अंश

अमेरिका और यूएसएसआर ने किए थे कई परीक्षण 

वाशिंगटन । मार्च 2022 में पश्चिमी यूरोप पर सहारा रेगिस्तान से आई धूल भरी आंधी ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया। इस धूल में 1950 और 1960 के दशक में अमेरिका और सोवियत यूनियन (यूएसएसआर) द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों के रेडियोएक्टिव अंश मिले है। एक रिसर्च टीम ने धूल का विश्लेषण कर यह चौंकाने वाला खुलासा किया। हालांकि, वैज्ञानिकों ने साफ किया कि धूल में मौजूद रेडियोएक्टिविटी का स्तर खतरनाक सीमा से काफी कम था और इससे लोगों के स्वास्थ्य पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। 

सहारा की धूल भरी आंधियां अक्सर यूरोप तक पहुंचती हैं। पहले के शोधों से पता चला था कि अल्जीरिया के रेग्गाने क्षेत्र से ऐसी धूल उठती है, जहां 1960 के दशक में फ्रांस ने अपने पहले परमाणु परीक्षण किए थे। लेकिन मार्च 2022 की आंधी के बाद वैज्ञानिकों ने छह देशों से 110 सैंपल इकट्ठा कर इनका विश्लेषण किया, इसमें फ्रांस के परमाणु परीक्षणों के निशान नहीं मिले। बल्कि, इसमें वे रेडियोएक्टिव सिग्नेचर थे जो अमेरिका और सोवियत यूनियन के शीत युद्ध के दौरान किए गए सैकड़ों परमाणु परीक्षणों से निकले थे। 1950 और 1960 के दशकों में अमेरिका और यूएसएसआर ने रेगिस्तानों, महासागरों, द्वीपों और जंगलों में कई परमाणु परीक्षण किए थे। इन परीक्षणों के कारण रेडियोएक्टिव तत्व वातावरण में फैले थे, जो अब भी हवा में मौजूद हैं और सहारा की आंधियों के जरिए यूरोप तक पहुंच रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों ने पाया कि इस धूल में मौजूद रेडियोएक्टिव तत्व निर्धारित सुरक्षित सीमा के मात्र 0.02 प्रतिशत ही थे, यानी इनका स्तर इतना कम था कि इससे स्वास्थ्य को कोई गंभीर खतरा नहीं था।

इस अध्ययन से एक बात साफ होती हैं कि दशकों पहले हुए परमाणु परीक्षणों का असर वर्तमान में भी हमारे पर्यावरण में बना हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की रिसर्च से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि पुराने परमाणु परीक्षणों के प्रभाव कितने लंबे समय तक पृथ्वी के वायुमंडल में बने रहते हैं और भविष्य में हमें इस तरह के खतरों से कैसे निपटना चाहिए।


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