मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा डॉ. सीमा शाह का काव्य संग्रह चयनित, संस्कृति मंत्रालय द्वारा शोध सन्दर्भ भी किया गया स्वीकृत

Aug 25, 2022

मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति विभाग द्वारा प्रथम कृति प्रकाशन अनुदान योजना के तहत जिले  की वरिष्ठ साहित्यकार एवं शासकीय महाविद्यालय रानापुर में हिन्दी की सहायक प्राध्यापिका डॉ. सीमा शाह के काव्य संग्रह  "ताकि मैं लिख सकूं"  का चयन किया गया है। उक्त काव्य संग्रह शाह द्वारा वर्ष 2020-2021 में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी को भेजा गया था, जिसे अब स्वीकृति प्राप्त हुई है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा आदिवासी समुदाय की महिलाओं को केंद्र में रखकर इनके द्वारा तैयार किए गए शोध लेखन को भी स्वीकृति प्रदान की गई है। 


       मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ. विकास दवे के अनुसार पिछले दो वर्ष में कुल 80 रचनाकारों को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति विभाग की और से उनकी प्रथम कृतियों के प्रकाशन हेतु सम्मान राशि प्रदान की गई है,  इसमें डॉ. सीमा शाह का काव्य संग्रह भी सम्मिलित किया गया है। 


      सीमा शाह द्वारा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली की सीनियर फैलोशिप के तहत "इक्कीसवीं सदी में आदिवासी महिलाओं के विकास की ओर बढ़ते कदम" विषय पर एक शोध की पांडुलिपि भी प्रेषित की गई थी, जिसे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा अब स्वीकृति प्रदान की गई  है। इसे अब पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जाएगा।


       इस सन्दर्भ में बात करते हुए डॉ. सीमा शाह ने अरण्यपथ न्यूज और संवाद एजेंसी ईएमएस को बताया कि उक्त शोध में पश्चिमी मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की आदिवासी महिलाओं की जीवन शैली पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए नई सदी में आदिवासी समुदाय की महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक विकास की समग्र रूप से विवेचना की गई है, साथ ही राजनीति के क्षेत्र में उनके बढ़ते कदम की ओर भी द्रष्टिपात किया गया है। 

 उल्लेखनीय है कि सीमा शाह की रचनाएं एवं आलेख देश की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होते आए  हैं। वे प्रकृति की कोमल कल्पनाओं की कवयित्री है,  ओर उनके द्वारा एक तरफ जहां अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से प्रकृति के सुन्दर स्वरूपों का चित्रण किया गया है, वहीं महिलाओं की संवेदनाओं को सहज रूप से अभिव्यक्त भी किया गया है। उनके द्वारा आदिवासी समुदाय की महिलाओं को केंद्र में रखकर साहित्य सृजन किया जाता रहा है।  वे जिले के कुछ एक ऐसे चुनिंदा साहित्यकारों में शुमार है जो रचनाधर्मिता के प्रदर्शन और विज्ञापनपरक कार्य प्रणाली से दूरी बनाए हुए एकाकी रूप से साहित्य सृजन के अपने धर्म का समुचित रूप से निर्वाह कर रहे हैं। 

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