पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर रही भारत और अफगानिस्तान की दोस्ती

इस्लामाबाद। भारत और अफगानिस्तान के बीच चल रही दोस्ती से पाकिस्तान परेशान हो गया है। खासतौर से तब, जब अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बीच दुबई में बैठक हुई। इस बैठक ने पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को हिलाकर रख दिया है। इस बैठक में द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर गहन चर्चा हुई। भारत-अफगानिस्तान के इस बढ़ते सहयोग से पाकिस्तान में चिंता की लहर दौड़ गई है। इस्लामाबाद में अब उच्चस्तरीय बैठकें हो रही हैं, जहां नीति-निर्धारक अफगानिस्तान के प्रति आक्रामक रुख पर पुनर्विचार कर रहे हैं।

भारत ने हाल ही में अफगानिस्तान में पाकिस्तानी वायु हमले की कड़ी निंदा की थी, जिसमें 46 लोग मारे गए थे, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस घटना के बाद अफगानिस्तान द्वारा भारत को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और आर्थिक साझेदार बताए जाने से पाकिस्तान की अफगान नीति की आलोचना तेज हो गई है। रणनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के लिए चेतावनी का समय है। उन्होंने बताया कि तालिबान के कब्जे से पहले भारत अफगानिस्तान में प्रमुख भूमिका निभा चुका है और उसने पुनर्निर्माण परियोजनाओं पर तीन बिलियन डॉलर का निवेश किया था। उन्होंने कहा कि भारत अब अफगान तालिबान के साथ संतुलित और सावधानीपूर्वक काम कर रहा है, जबकि पाकिस्तान का अफगानिस्तान के प्रति दृष्टिकोण अत्यधिक आक्रामक हो गया है। पाकिस्तान अफगान तालिबान पर आरोप लगाता है कि वह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को सुरक्षित पनाहगाह देता है, जबकि काबुल इन आरोपों से इनकार करता आया है। टीटीपी पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों को अंजाम देकर सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। 

विशेषज्ञों का मानना है कि कंधार स्थित तालिबान नेतृत्व के साथ सीधे संवाद कर पाकिस्तान इस समस्या का हल निकाल सकता है। पाकिस्तान की मौजूदा नीति, जिसमें संवाद कम और आक्रामकता अधिक है, पर भी सवाल उठ रहे हैं। 2023 में तालिबान द्वारा जारी एक फतवे का जिक्र करते हुए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि इस फतवे का उपयोग तालिबान को टीटीपी के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए मनाने में किया जा सकता है। भारत और अफगानिस्तान की बढ़ती नजदीकियां पाकिस्तान के लिए रणनीतिक चुनौती बनती जा रही हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अगर इस्लामाबाद ने अपनी नीति में बदलाव नहीं किया तो यह क्षेत्रीय अस्थिरता को और बढ़ा सकता है। 


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