
नाटो के मामले में 6 मार्च को यूरोपीय यूनियन की होगी बैठक
Mar 03, 2025
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अरबपति एलन मस्क के बयानों को लेकर माना जाने लगा है कि नाटों अब त्यादा समय तक नहीं रह पाएगा। लंदन में यूरोपीय नेताओं की आपात बैठक के दौरान वॉन डेर लेयन ने कहा कि वह 6 मार्च को होने वाले ईयू शिखर सम्मेलन में ‘व्यापक योजना’ पेश करेंगी, जिसमें यूरोप की रक्षा क्षमताओं को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की रणनीति होगी। उन्होंने दो टूक कहा, ‘अब समय आ गया है कि हम रक्षा खर्च में तेजी से इजाफा करें और सबसे खराब स्थिति के लिए तैयार रहें।
नाटो के सामने इस वक्त दोहरी चुनौती है- एक तरफ रूस का बढ़ता खतरा, तो दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का अप्रत्याशित रुख… राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से ट्रंप सबसे बड़े ग्लोबल डिसरप्टर (उथल-पुथल मचाने वाला) साबित हुए हैं। ऐसे में यूरोपीय नेताओं ने अब अपनी सुरक्षा को लेकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। आने वाले दिनों में यूरोप का रक्षा बजट बढ़ सकता है और नाटो से इतर नई सुरक्षा व्यवस्थाएं उभर सकती हैं। वॉन डेर लेयन की पहल इसी दिशा में पहला बड़ा कदम मानी जा रही है।
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि अगर यूरोपीय देश अपने रक्षा खर्च में इजाफा नहीं करते हैं, तो अमेरिका उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं देगा। इस बयान ने नाटो की स्थिरता को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ा दी हैं। ट्रंप का यह रुख न केवल यूरोपीय नेताओं के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि इससे रूस को भी आक्रामक नीति अपनाने का संकेत मिल सकता है। यही वजह है कि यूरोप अब अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर रहने के बजाय अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने पर जोर दे रहा है। वॉन डेर लेयन ने इस संदर्भ में कहा, ‘हम अमेरिका के साथ मिलकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए तैयार हैं, लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी देश अपने पड़ोसी पर आक्रमण न कर सके, उसे धमका न सके, या बलपूर्वक सीमाओं को न बदले।’
इस पूरे घटनाक्रम में टेक दिग्गज एलन मस्क की भी अप्रत्यक्ष भूमिका दिखती है। उनकी कंपनी स्टारलिंक पहले ही यूक्रेन युद्ध में अहम भूमिका निभा चुकी है, लेकिन हाल ही में मस्क ने भी नाटो की अमेरिकी फंडिंग रोकने की बात कही है। इसके साथ ही उन्होंने कुछ दिनों पहले साफ किया था कि उनकी तकनीक को सैन्य उद्देश्यों के लिए अनियंत्रित तरीके से उपयोग नहीं किया जा सकता। इससे पश्चिमी देशों के भीतर यह बहस छिड़ गई है कि क्या निजी कंपनियों पर रक्षा क्षेत्र में अत्यधिक निर्भरता सुरक्षित है।
वीरेंद्र/ईएमएस/03मार्च2025