
बजट में केंद्र सरकार रुपए को मजबूत करने वाले उपायों की कर सकती है घोषणा
Jan 29, 2025
रुपया 86 प्रति डॉलर के स्तर से नीचे गिरकर 87 के करीब पहुंच गया
नई दिल्ली,। आगामी बजट में सरकार रुपए को मजबूत करने वाले उपायों की घोषणा कर सकती है। अर्थशास्त्रियों और ऋण कोष प्रबंधकों को उम्मीद है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी बढाए जाने के लिए उठाए गए कदमों के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी बजट में कुछ ऐसी घोषणाएं करेंगी, जो गिरते रुपए को संभालने में मदद करेंगी।
कुछ महीनों में वैश्विक स्तर पर डॉलर मजबूत हुआ है, लेकिन इसके बावजूद रुपया अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं—जैसे ब्राजील, कोरिया और तुर्की की मुद्राओं—की तुलना में स्थिर रहा है। हाल ही में रुपया 86 प्रति डॉलर के स्तर से नीचे गिरकर 87 के करीब पहुंच गया था, लेकिन अब इसमें सुधार देखा जा रहा है। मंगलवार को यह 86.52 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कुछ प्रोत्साहन उपायों की घोषणा कर सकती है। इससे रुपए को अल्पकालिक समर्थन मिलेगा और दीर्घकालिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा। इसके अलावा सरकार विदेशी जमा को आकर्षित करने के लिए बैंकों को ज्यादा ब्याज दर देने की अनुमति देने जैसे उपायों पर विचार कर सकती है। 2013 की तरह बड़े पैमाने पर एनआरआई जमा जुटाने की योजना की संभावना बेहद कम है। भारत की मुद्रा प्रबंधन नीति का लक्ष्य रुपए को किसी निश्चित स्तर पर बनाए रखना नहीं रहा है, बल्कि इसकी व्यवस्थित गति सुनिश्चित करना रहा है।
इस नीति के तहत ब्याज दरों के अंतर को संतुलित करने के लिए मौद्रिक नीति का इस्तेमाल किया जाता है साथ ही मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप भी रुपए को स्थिर बनाए रखने का एक प्रमुख साधन है। हाल के दिनों में आरबीआई ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप से परहेज किया है ताकि घरेलू विकास और मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए धन बाजार में तरलता की कमी न हो। इसके अलावा केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति में ढील की सुगम ट्रांसमिशन सुनिश्चित करने के लिए रुपए की तरलता भी बढ़ा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बैंकिंग प्रणाली में तरलता मुद्रा आपूर्ति का संकेतक होती है। मौजूदा स्थिति में डॉलर की बिक्री की अनुपस्थिति और आरबीआई द्वारा खुले बाजार खरीद के जरिए से रुपए की तरलता बढ़ाने की नीति मुद्रा आपूर्ति को कम करने के बजाय बढ़ा रही है। इससे यह संकेत मिलता है कि अब रुपए को स्थिर करने के लिए नए उपायों पर विचार किया जा रहा है, न कि केवल तरलता और ब्याज दरों के जरिए इसे नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।