ट्रंप के एक फैसले से एच-1बी वीजा धारकों के लिए परेशानी, भारतीयों की बढ़ेगी चुनौती

वाशिंगटन। अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी नई सरकार का गठन में कई चौंकाने वाले फैसले लिए हैं। उनके हालिया निर्णयों में सबसे खास है उनके लंबे समय के सहयोगी और नीति विशेषज्ञ स्टीफन मिलर को नीति के उप प्रमुख के रूप में नियुक्त करना। मिलर को इमिग्रेशन के मामले में एक कट्टरपंथी नजरिया रखने के लिए जाना जाता है, और यह निर्णय विशेष रूप से अमेरिका में रह रहे भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों और एच-1बी वीजा धारकों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है। उप-राष्ट्रपति-चुनाव जेडी वेंस ने इस नियुक्ति का स्वागत किया और कहा कि मिलर ट्रंप के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से हैं, जो उनके पहले कार्यकाल में भी कई अहम नीतिगत निर्णयों में मुख्य भूमिका निभा चुके हैं।

ट्रंप प्रशासन के पिछले कार्यकाल में भी मिलर ने 2018 में प्रवासी परिवारों को अलग करने जैसी कठोर आव्रजन नीतियों में अग्रणी भूमिका निभाई थी। इस बार भी उनके कट्टरपंथी दृष्टिकोण के चलते  वीजा धारकों पर खासा असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन ने पहले भी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और उच्च-कुशल विदेशी नागरिकों के अमेरिका में स्थाई रूप से काम करने की राह में कई नीतिगत अवरोध खड़े किए थे। एच-1बी वीजा धारकों के लिए अमेरिकी कंपनियों में काम करना कठिन बना देने वाले इन नीतियों के कारण, कई भारतीय पेशेवरों को वीजा रिजेक्ट होने की संभावना बढ़ गई है। सख्त पात्रता मानदंड और एच-1बी पदों के लिए न्यूनतम वेतन बढ़ाने जैसे कदम भी भारतीय पेशेवरों के लिए रोजगार के अवसरों को सीमित कर सकते हैं। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन ने आवेदन प्रक्रिया को जटिल बनाते हुए वीजा के लिए दस्तावेजीकरण और जांच की प्रक्रियाओं को भी कड़ा कर दिया है, जिससे प्रोसेसिंग टाइम लंबा हो सकता है और भारतीय वीजा आवेदकों को अनुमोदन में देरी का सामना करना पड़ सकता है।


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