सतपात्र को दिया गया दान ही सबसे बड़ा दान - मुनि श्री प्रमाण सागर

Jun 06, 2025

भोपाल  । सतपात्र को दिया गया दान ही सबसे बड़ा दान है“भगवान की तपस्या भी तभी फलीभूत होती है जब उनके आहार का निमित्त कोई पुण्यात्मा जीव बनता है उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने अयोध्या नगरी बने पंचकल्याणक स्थल पर मुनि ऋषभ देव की प्रथम आहार चर्या पर  पांचवे दिवस ज्ञान कल्याणक महोत्सव पर विद्याप्रमाण गुरुकुलम् में व्यक्त किये ।

प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया 6 जून सुक्रवार को पंचकल्याणक महामहोत्सव का अंतिम दिवस है एवं कार्यक्रम स्थल आयोध्या नगरी में प्रातः6 बजे से मांगलिक क्रियायें प्रारंभ हो जाऐगी कैलाश पर्वत से भगवान को निर्वाण की प्राप्ती के पश्चात पूजन हवन के पश्चचात मुनि श्री का उदवोधन एवं गजरथ के साथ भगवान की शोभायात्रा निकाली जाऐगी एवं श्री जी नवीन चैत्यालय में विराजमान होंगे। आहार दान के इस अवसर पर मुनि श्री ने कहा कि आहार दान केवल एक कर्म नहीं, युगों युगों का मार्ग निर्धारण करता है।” जब-जब दान की बात आती है तो धन को प्रमुखता दी जाती है लेकिन तुलनात्मक रूप से जब विचार किया जाता है तो शास्त्रों में आहार, औषधि, उपकरण, तथा आवास दान को प्रमुखता दी गयी है मुनि श्री ने राजा श्रेयांश और राजा सोम  कीअमर कथा को सुनाते हुये कहा कि इससे ‘दान तीर्थ’ की स्थापना हुई, तथा ‘धर्म तीर्थ’ प्रारंभ हुआ,छह माह तक निराहार विचरण के उपरांत मुनि ऋषभदेव ने जब राजा श्रेयांश के हाथों आहार लिया,तो देवताओं ने श्रेयांश राजा को ‘दान तीर्थंकर’ की उपाधि से अलंकृत किया। आज पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महा महोत्सव पर दान तीर्थ की यह परंपरा पुनः सजीव हो गई जब राजा श्रेयांश बने विनीत गोधा और राजा सोम बने डॉ. शरद जैन के परिवार ने प्रभु का पड़गाहन कर इच्छुरस से आहार दान दिया।

मुनि श्री ने विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता को स्पष्ट करते हुये कहा कि आहार दान में “नवधा भक्ति” की पूर्णता होनी चाहिए उन्होंने सोला की परिभाषा बताते हुये कहा कि दाता के सात गुण और नौ पुण्य का समागम ही सोला है “आहार के पूर्व रात्रि भोजन का त्याग और जीवन में मध,मांस तथा मधु का परित्याग आवश्यक है। उन्होंने कहा कि कभी भी झूठ बोलकर आहार मत दैना झूंठ बोलकर आहार दैने से आपका पुण्य भी झंठा हो जाता है, उन्होंने कहा कि जब आप शुद्धी बोलते है तो आहार भी शुद्ध ही कराना चाहिये। मुनि श्री ने आजकल कृषी में भारी मात्रा में रसायन का प्रयोग किये जाने पर सभी भक्तों से आग्रह किया कि वह “अपने घर के बजट में संशोधन करें,और ऑर्गेनिक आहार को खुद भी अपनाएं,तथा वही शुद्ध आहार साधु-संतों को दें।

” जिससे आप भी स्वस्थ रहें तथा साधू भी स्वस्थ रहे, यह न केवल आत्मिक स्वास्थ्य की कुंजी है, बल्कि आध्यात्मिक परंपरा की रक्षा का भी एक सूत्र है।इस अवसर पर स्थानीय विधायक रामेश्वर शर्मा पधारे एवं उन्होंने संबोधित करते हुए कहा कि “आज भारत अपनी संस्कृति की सिंह गर्जना कर रहा है, भगवान महावीर का संदेश और भगवान ऋषभदेव की तपस्या हमें संयम, समर्पण और संस्कृति की रक्षा करना सिखाती है।” मुनि संघ के प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया कार्यक्रम का संचालन प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्र. अशोक भैया एवं अभय भैया ने किया पूरा सभास्थल “जय ऋषभदेव के जयकारों से गूंज उठा, दौपहर पश्चात भगवान को केवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई तथा समवसरण की रचना की गई जिसमें कमलासन पर भगवान विराजमान हुये तथा मुनि श्री ने समवसरण से श्रद्दालुओं के प्रश्नों का जबाब दिया।


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