पर्दे की सूजन से जा सकती है आंखों की रौशनी

आंखों के पर्दे की सूजन को मैक्युलर इडिमा कहते हैं। इसमें रेटिना के केंद्र वाले भाग, जिसे मैक्युला कहा जाता है, में फ्लुएड यानी तरल का जमाव हो जाता है। रेटिना हमारी आंखों का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है, जो कोशिकाओं की एक संवेदनशील परत होती है। मैक्युला रेटिना का वह भाग होता है, जो हमें दूर की वस्तुओं और रंगों को देखने में सहायता करता है। जब रेटिना में तरल पदार्थ अधिक हो जाता है और रेटिना में सूजन आ जाती है तो मैक्युलर इडिमा की समस्या हो जाती है। अगर मैक्युलर इडिमा का उपचार न कराया जाए तो दृष्टि संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं या आंखों की रोशनी भी जा सकती है। 

क्या हैं लक्षण

शुरुआत में मैक्युलर इडिमा के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, न ही इसके कारण आंखों में दर्द होता है। जब सूजन बढ़ जाती है और रक्त नलिकाओं में ब्लॉकेज होने लगती है, तब चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं। सूजन जितनी व्यापक, मोटी और गंभीर होगी, उतना ही अधिक धुंधला और अस्पष्ट दिखाई देगा। अगर ऐसे लक्ष्ण दिखायी दें तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें। 

आंखों के आगे अंधेरा छा जाना।

चीजें हिलती हुई दिखाई देना।

पढ़ने में कठिनाई होना।

चीजों के वास्तविक रंग न दिखाई देना। 

दृष्टि विकृत हो जाना। सीधी रेखाएं,टेढ़ी दिखाई देना।

आंखों के पर्दे का तेज रोशनी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाना। 

अधिकतर में यह समस्या केवल एक आंख में होती है, इसलिए लक्षण गंभीर होने पर ही इनका पता लग पाता है। वैसे जिन्हें एक आंख में यह समस्या होती है, उनमें दूसरी आंख में इसके होने की आशंका 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। 

इस रोग के कारण 

क्त वाहिनियों से संबंधित रोग (नसों में अवरोध /रुकावट)।

उम्र का बढ़ना (एज रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन)।

वंशानुगत रोग (रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा)।

आंख में ट्यूमर हो जाना।

मैक्युला में छेद हो जाना।

रेडिएशन के कारण रेटिना की महीन शिराओं में अवरोध।

आंख में गंभीर चोट लग जाना।

आंखों की सर्जरी, जैसे मोतियाबिंद, ग्लुकोमा या रेटिना संबंधी मामलों में हुई सर्जरी।

कैसे होती है जांच

विजुअल एक्युटी टेस्ट : मैक्युलर इडिमा के कारण दृष्टि को पहुंची क्षति को जांचने के लिए यह टेस्ट किया जाता है।

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्रॉफी : ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्रॉफी में विशेष रोशनियों और कैमरे का इस्तेमाल कर रेटिना की मोटाई मापी जाती है। यह जांच मैक्युला की सूजन को निर्धारित करने में भी उपयोगी है।   

एम्सलर ग्रिड : एम्सलर ग्रिड दृष्टि में हुए मामूली बदलावों की भी पहचान कर सकता है। इसके द्वारा सेंट्रल विजन को मापा जाता है।

डाइलेटेड आई एक्जाम : इसमें पूरे रेटिना की जांच की जाती है। इसमें लीकेज करने वाली रक्त नलिकाओं या सिस्ट का भी पता लगाया जाता है। फ्लोरेसीन एंजियोग्राम : फ्लोरेसीन एंजियोग्राम में रेटिना की फोटो ली जाती है। यह टेस्ट नेत्र रोग विशेषज्ञ को रेटिना को पहुंचे नुकसान को पहचानने में सहायता करता है।

क्या हैं उपचार

एक बार जब यह समस्या हो जाए तो इसके कारणों का उपचार करना भी जरूरी है। इसमें मैक्युला और उसके आसपास असामान्य रक्त वाहिकाओं से तरल के अत्यधिक रिसाव को ठीक किया जाता है। मैक्युलर इडिमा के उपचार में दवाएं, लेजर और सर्जरी प्रभावी होते हैं, पर इंट्राविट्रियल इंजेक्शन (आईवीआई) सबसे प्रचलित है। यदि मैक्युलर इडिमा एक ही जगह पर है तो फोकल लेजर किया जा सकता है।

आई ड्रॉप्स : एंटी-इनफ्लेमेटरी ड्रॉप्स द्वारा रेटिना की मामूली सूजन को कम किया जा सकता है। आंखों की सर्जरी के पश्चात डॉक्टर द्वारा सुझाई आई ड्रॉप्स नियत समय पर डालने से भी मैक्युलर इडिमा की आशंका कम हो जाती है। 

फोकल लेजर ट्रीटमेंट : इसके द्वारा मैक्युला की सूजन कम करने का प्रयास किया जाता है। लेजर सर्जरी में कई सूक्ष्म लेजर पल्सेस मैक्युला के आसपास उन क्षेत्रों में डाली जाती हैं, जहां से तरल का रिसाव हो रहा है। इस उपचार के द्वारा इन रक्त नलिकाओं को सील करने का प्रयास किया जाता है। अधिकतर मामलों में फोकल लेजर ट्रीटमेंट के पश्चात दृष्टि में सुधार आ जाता है। 

सर्जरी : मैक्युलर इडिमा के उपचार के लिए की जाने वाली सर्जरी को विटरेक्टोमी कहते हैं। इसके द्वारा मैक्युला पर जमे हुए फ्लूइड को निकाल लिया जाता है। इससे लक्षणों में आराम मिलता है। आईवीआई : आईवीआई डे केयर प्रक्रिया है, जो टॉपिकल एनेस्थीसिया की मदद से की जाती है, जिसमें दवा की बहुत थोड़ी मात्रा को छोटी सुई के द्वारा आंखों के अंदर डाला जा सकता है। इंजेक्शन लगाने में सामान्यता कोई दर्द नहीं होता है। आईवीआई को एक प्रशिक्षित रेटिना विशेषज्ञ के द्वारा कराना चाहिए, जो उपचार को प्रभावी तरीके से कर सके और संभावित जटिलताओं को कम कर सके। अगर मैक्युलर इडिमा का कारण ग्लुकोमा या मोतियाबिंद है तो इनका उपचार भी जरूरी है। 

रोकथाम को जानें

मैक्युलर इडिमा के मामले बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है असंतुलित जीवनशैली। इसके कारण डायबिटीज और उच्च रक्तदाब के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।  इन्हें नियंत्रित करके काफी हद तक इन बीमारियों से बचा जा सकता है। 

धूम्रपान न करें, क्योंकि इससे मैक्युला क्षतिग्रस्त होता है।

रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम जरूर करें।

नियमित रूप से आंखों का व्यायाम करें।

आंखों को चोट आदि लगने से बचाएं।

संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें, जो विटामिन ए और एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर हो।




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