भोजन करने संबंधी कुछ जरूरी नियम

सनातन ध्रर्म में आहार ग्रहण करने के दौरान भी कुछ नियमों का पालन करना जरुरी माना गया है। माना गया है कि जिसप्रकार हम आहार करेंगे वैसे ही हमारे विचार भी होंगे। 

सर्वप्रथम : भोजन करने से पूर्व हाथ पैरों व मुख को अच्छी तरह से धोना चाहिये। भोजन से पूर्व अन्नदेवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुए तथा सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो, ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए।

वहीं भोजन बनाने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाएं और सबसे पहले 3 रोटियां (गाय, कुत्ते और कौवे हेतु) अलग निकालकर फिर अग्निदेव को भोग लगाकर ही घर वालों को खिलाएं।

भोजन के समय 

प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है, क्योंकि पाचनक्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2.30 घंटे पहले तक प्रबल रहती है।

जो व्यक्ति सिर्फ एक समय भोजन करता है वह योगी और जो दो समय करता है वह भोगी कहा गया है

एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है सुबह का खाना स्वयं खाओ, दोपहर का खाना दूसरों को दो और रात का भोजन दुश्मन को दो

भोजन की दिशा:

भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही करना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है।

ऐसे में न करें भोजन:

शैया पर, हाथ पर रखकर, टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए।

मल-मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वटवृक्ष के नीचे भोजन नहीं करना चाहिए।

परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए।

ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनभाव, द्वेषभाव के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है।

खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढंककर भोजन नहीं करना चाहिए

ये भोजन न करें:

गरिष्ठ भोजन कभी न करें।

बहुत तीखा या बहुत मीठा भोजन न करें।

किसी के द्वारा छोड़ा हुआ भोजन न करें।

आधा खाया हुआ फल, मिठाइयां आदि पुनः नहीं खाना चाहिए।

खाना छोड़कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए।

जो ढिंढोरा पीटकर खिला रहा हो, वहां कभी न खाएं।

पशु या कुत्ते का छुआ, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राद्ध का निकाला, बासी, मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया, बाल गिरा हुआ भोजन न करें।

अनादरयुक्त, अवहेलनापूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करें।

*कंजूस का, राजा का, वेश्या के हाथ का, शराब बेचने वाले का दिया भोजन और ब्याज का धंधा करने वाले का भोजन कभी नहीं करना चाहिए।

भोजन करते वक्त क्या करें:

भोजन के समय मौन रहें।

रात्रि में भरपेट न खाएं।

बोलना जरूरी हो तो सिर्फ सकारात्मक बातें ही करें।

भोजन करते वक्त किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा न करें।

भोजन को बहुत चबा-चबाकर खाएं।

गृहस्थ को 32 ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए।

सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन, अंत में कड़वा खाना चाहिए।

सबसे पहले रसदार, बीच में गरिष्ठ, अंत में द्रव्य पदार्थ ग्रहण करें।

थोड़ा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुंदर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है।

भोजन के पश्चात क्या न करें:

भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए। भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि नहीं करना चाहिए।

भोजन के पश्चात क्या करें:

भोजन के पश्चात दिन में टहलना एवं रात में सौ कदम टहलकर बाईं करवट लेटने अथवा वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। भोजन के एक घंटे पश्चात मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पाचन अच्छा होता है।

क्या-क्या न खाएं:

रात्रि को दही, सत्तू, तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए।

दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए।

शहद व घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना।

दूध-खीर के साथ खिचड़ी नहीं खाना चाहिए।



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