हुनर से मिली दिव्यांग कारीगरों को नई पहचान
Jul 29, 2024
नई दिल्ली । कश्मीर की प्राचीन सोजनी कला को नया जीवन देने वाले तारिक अहमद मीर ने कहा कि पहले ताने सुनने को मिलते थे, लेकिन अब हमारी कहानियां मिसाल के रूप में समाज के सामने हैं। हम सभी कलाकारों को लोग हुनर से पहचानते हैं न कि दिव्यांगता से। तारिक अहमद मीर बडगांम से अपने हुनर का प्रदर्शन दिखाने अमृता शेरगिल मार्ग स्थित जम्मू कश्मीर हाउस में संभाव उत्सव 2.0 में आए हैं। सोमवार तक चलने वाले इस उत्सव का आयोजन जम्मू कश्मीर रेजिडेंट कमीशन की ओर से किया जा रहा है। तारिक हाथों से दिव्यांग होने के बावजूद भी इतनी बारीकी से शॉल में धागा पिरोते हैं कि हर कोई दंग रह जाता है। उसमें कश्मीर की संस्कृति साफ झलकती है।
उनके हाथों की महीन कारीगरी उत्सव में आकर्षक का केंद्र बनी हुई है। अगर आप भी जम्मू कश्मीर की संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो यह उत्सव आपके लिए बिल्कुल खास है। यहां कलाकार सांस्कृतिक कलात्मक विरासत, व्यंजन, कृषि और हस्तशिल्प उत्पादों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। एक अन्य कलाकार मीर मायूसी के साथ कहते हैं कि मौजूदा पीढ़ी इस दिशा में कम ध्यान दे रही है। वह कहते हैं कि वर्ष 2012 में टूटे मनोबल को एकत्रित कर उन्होंने ही घर पर शॉल पर कलाकारी करनी शुरू कर दी थी। उन्होंने इसे लेकर एक संस्था बनाई। इसमें केवल दिव्यांग कारीगरों को ही शामिल किया गया।
वह कहते हैं कि उन्होंने दिव्यांगता को लेकर दिए जाने वाले तानों को ही हौसला बना लिया है। अभी उनके साथ 40 कारीगर व 200 परिवार इस प्राचीन कला को संजोने का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक शॉल को बनाने के लिए एक महीने से तीन साल तक लग जाते हैं। ऐसे में इनकी कीमत तीन से पांच लाख रुपये तक है।