अतिथि विद्वानों के लिए पीएचडी की अनिवार्यता क्यों : हाईकोर्ट
Feb 29, 2024
राज्य शासन व उच्च शिक्षा आयुक्त से किया जवाब तलब
भोपाल । प्रदेश के अतिथि विद्वानों के लिए पीएचडी की अनिवार्यता क्यों की गई। इस मामले को लेकर मप्र हाईकोर्ट ने राज्य शासन व उच्च शिक्षा आयुक्त से जवाब तलब किया है। एक याचिका के जरिए हाई कोर्ट में अतिथि विद्वानों के लिए पीएचडी की अनिवार्यता को चुनौती दी गई है। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगल पीठ ने मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद राज्य शासन व उच्च शिक्षा आयुक्त सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया है। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी प्रियंका उपाध्याय व पुष्पा चतुर्वेदी सहित अन्य अतिथि विद्वानों की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि अतिथि विद्वानों की नियुक्ति के संबंध में छह अक्टूबर, 2023 को जारी नियम 10 (4) कठघरे में रखे जाने के योग्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह नियम हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांतों के विपरीत है। याचिकाकर्ता पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से विभिन्न महाविद्यालय में अतिथि विद्वान के रूप में कार्य कर रहे हैं। इतना ही नहीं निर्धारित शैक्षणिक योग्यता होने पर ही उन्हें अतिथि विद्वान के रूप में नियुक्त किया गया था।
लेकिन वर्ष 2023 में यूजीसी द्वारा अतिथि विद्वानों के लिए पीएचडी डिग्री अनिवार्य कर दी गई है। जिसके आधार पर नए नियम बनाए गए हैं व यह उल्लेख किया गया है की जो अतिथि विद्वान पीएचडी की डिग्री आहरित नहीं करते हैं उन्हें अन्य अतिथि विद्वानों के तहत दिए जाने वाले लाभ प्राप्त नहीं होंगे। याचिकाकर्ता पूर्व से कार्य कर रहे है, यूजीसी के नये नियम पूर्व से कार्यरत अतिथि विद्वानों पर लागू नहीं होंगे।
नये नियमों के कारण कुछ अतिथि विद्वानों को पुन: नियुक्ति नहीं दी जा रहीं है। जिससे स्पष्ट है कि उक्त पदों पर नए अतिथि विद्वान नियुक्त किए जाएंगे, जो कि अवैधानिक हैं। जबकि याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति देते समय उनसे अनुबंध भी लिखवाया गया था कि वह अन्यत्र कोई कार्य नहीं करेंगे, किंतु अब नये नियमों के तहत उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है। मामले में अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी प्रियंका उपाध्याय व पुष्पा चतुर्वेदी सहित अन्य अतिथि विद्वानों की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा।