दो महायुद्धों ने पूरी दुनिया में बढ़ाया टेंशन,बातचीत से समाधान जरुरी: जयशंकर

रोम।विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने सोमवार को रोम में मेडिटेरेनियन संवाद-24 को संबोधित करते हुए रूस-यूक्रेन और इजरायल-ईरान युद्ध को दुनिया में बढ़ते गंभीर तनाव की बड़ी वजह बताया और एक बार फिर से भारत के शांति संदेश को सबके सामने दोहराया। उन्होंने कहा कि हम आतंकवाद और लोगों को बंधक बनाए जाने की कड़ी निंदा करते हैं। युद्धक्षेत्र से कोई समाधान नहीं निकल सकता है। वर्तमान में जारी इन संघर्षों का समाधान युद्ध से नहीं निकाला जा सकता है। जल्द बातचीत और कूटनीति के मार्ग पर चलकर ही समाधान निकाला जा सकता है। संघर्षों को लेकर यही दुनिया की और खासतौर पर वैश्विक दक्षिण की राय है। उन्होंने कहा कि दोनों संघर्षों से कई प्रकार की गंभीर वैश्विक समस्याएं खड़ी हो गई हैं। सप्लाई चेन असुरक्षित हैं, समुद्री कनेक्टिविटी में बाधा उत्पन्न हो गई है। जलवायु संबंधी घटनाएं तेजी के साथ विकराल रूप में सामने आ रही हैं और कोरोना महामारी ने तो पहले ही हमारे ऊपर गहरे घाव छोड़े हैं। आज हम एक नए युग की दहलीज पर हैं। ये पुन: वैश्वीकरण, पुनर्संतुलन और बहुध्रुवीयता का युग है। इस दौर में अवसर चिंताओं के बराबर बंटने वाले नहीं हैं।    

डॉ जयशंकर ने मध्य-पूर्व को लेकर कहा कि वहां के हालात हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। विवाद बढ़ने के साथ-साथ हमारी चिंताएं भी बढ़ रही हैं। भारत आतंकवाद और लोगों को बंधक बनाए जाने की निंदा करता है। सैन्य अभियानों में बेकसूर नागरिकों की मौत अस्वीकार्य है। इस मामले पर भारत इसके द्विराष्ट्र समाधान का पक्षधर है। उन्होंने कहा कि भारत अपनी क्षमता के हिसाब से विभिन्न पक्षों से जुड़ा हुआ है। हम शांति स्थापना के लिए जारी किसी भी कूटनीतिक प्रयास में योगदान करने के लिए तैयार हैं। हम इजरायल और ईरान के साथ उच्च स्तर पर जुड़े हुए हैं। जिससे तनाव को कम करने और बातचीत को बढ़ाने में मदद मिलेगी। लेबनान की जहां तक बात है तो वहां पर इटली की तरह ही हमारी एक सैन्य टुकड़ी संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले वैश्विक शांति सेना के भाग के रूप में तैनात है। जहां तक मामला अदन की खाड़ी और उत्तरी अरब सागर का है। वहां पर पिछले साल भर से वाणिज्यिक पोतों की सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना के जंगी युद्धपोतों को तैनात किया गया है। विदेश मंत्री ने कहा कि यूक्रेन युद्ध तीसरे साल में प्रवेश कर रहा है और आज के समय की जटिल समस्या है। विवाद का जारी रहने से गंभीर अस्थिरता वाले परिणाम सामने हैं। इसमें भूमध्यसागर भी शामिल है। यहां यह बिलकुल साफ है कि युद्धक्षेत्र से कोई समाधान नहीं निकल सकता है। भारत का यह भी मानना है कि इस युग में लड़ाई से कोई हल नहीं निकाला जा सकता।

इसके लिए जल्द ही संवाद और कूटनीति के मार्ग पर ही लौटना चाहिए। यह संपूर्ण विश्व की भावना है। इस वर्ष जून से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से रूस और यूक्रेन के नेताओं से मॉस्को और कीव में बातचीत कर चुके हैं। उन्होंने भूमध्यसागर क्षेत्र और मध्य पूर्व को आंकड़ों के साथ भारत के दो बड़े व्यापारिक साझेदार बताया। भूमध्यसागर के देशों के साथ भारत का वार्षिक व्यापार 80 बिलियन डॉलर है। यहां भारतीय समुदाय की संख्या 4 लाख 60 हजार है। इसका 40 फीसदी इटली में है। उर्वरक, ऊर्जा, जल, तकनीक, हीरा और रक्षा-साइबर जैसे क्षेत्रों से हमारे मुख्य हित जुड़े हुए हैं। भारत के हवाईअड्डे, बंदरगाह, रेलवे, स्टील, ग्रीन हाइड्रोजन, फास्फेट और पनडुब्बी केबल जैसी कुछ अहम परियोजनाएं जारी हैं। हमारे भूमध्यसागर क्षेत्र के साथ मजबूत राजनीतिक संबंध हैं और रक्षा सहयोग भी बढ़ रहा है। जिसमें अधिक युद्धाभ्यास और आदान-प्रदान शामिल हैं। 


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