मूर्तिकला क्षेत्र में भी हैं अवसर
Mei 31, 2024
देश में साल भर चलने वाले धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों को देखते हुए मूर्ति निर्माण उन युवाओं के लिए लाभदायक हो सकेगा जो इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं। मूर्तिकला त्रिआयामी, ठोस और मूर्त (साकार) रूप में अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। यह राउण्ड व रीलिफ आकार में हो सकता है, जिसका प्रयोग अनादिकाल से भारतीय सभ्यता में प्रचलित है। मूर्तियों का प्रयोग अभिव्यक्ति, पूजन-उपासना, सजावट, भय,स्मृति और पहचान आदि हेतु सहस्त्राब्दियों से होता रहा है। भारत के साथ विदेशों में भी अनेकानेक मन्दिर और कला मण्डप उपलब्ध हैं, जो मूर्तिकला के शाशवत अवदान का वर्णन प्रस्तुत करते हैं। भारतीय इतिहास का मध्यकाल इस प्रकार के अनेकों उदाहरण को समेटे हुए है। हमारे देश में वर्ष भर सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन होता रहता है, जिनमें अवसर अनुरूप मूर्तियों के प्रयोग का प्रचलन है। मन्दिर और पूजागृह की मूर्तियां स्थायी होती हैं, जबकि सामयिक और अवसर विशेष - उत्सव आदि के लिए प्रयुक्त मूर्तियां अस्थायी होती हैं। भारतीय धर्म में क्षेत्रानुसार हजारों व्रत व पूजा का उल्लेख मिलता है जिनमें भिन्न प्रकार के मूर्ति निर्माण की व्यवस्था दी गई है। ऐसे लाखों देवी-देवताओं का उल्लेख भारतीय शास्त्रों में मिलता है जिनकी पूजा-अर्चना व्रत और अनुष्ठान के अनुरूप की जाती है।
मूर्ति निर्माण व सृजन हेतु कई माध्यम व प्रक्रिया का प्रचलन है जिसमें विभिन्न प्रकार की सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। मूर्ति निर्माण के लिए जिन माध्यमों का सहारा लिया जाता है उनमें पाषाण, काष्ठ, धातु, मृण्मूर्ति महत्वपूर्ण हैं. इन माध्यमों से निर्मित आकृतियों में जन-सामान्य विशेष की संस्कृति का आभास होता है। आज यह कला मृण्मूर्ति, पाषाण, काष्ठ, धातु की यात्रा से गुजरते हुए कांच, फाइबर ग्लास, प्लास्टिक एवं अन्य सृजनात्मक माध्यम तक पहुंच चुकी है।
वर्गीकरण :
मूर्तिकला का वर्गीकरण कई मापदण्डों पर किया जा सकता है। यहां निम्न बिन्दुओं को आधार मान कर इसे वर्गीकृत करने का प्रयास किया जा रहा है।
क. स्थायित्व के आधार पर -
1 स्थायी 2 अस्थायी
ख आकार व स्वरूप के आधार पर-
1 राउण्ड 2 रीलिफ
ग साधन व सामग्री के आधार पर-
1 मिट्टी-मृण्मूर्ति 2. प्लास्टर ऑफ़ पेरिस
3 धातु, 4 सीमेण्ट, 5 पाषाण, 6 काष्ठ,
7 फाइबर ग्लास/सिन्थेटिक स्टोन,
8 मोम व लाख आदि, 9 एसेम्बलिंग विद
मिक्स मिडिया आदि।
घ पद्धति के आधार पर- 1 मॉडलिंग,
2. मोल्डिंग-कास्टिंग, 3 कार्विंग,
4 प्रतिस्थापन (इन्स्टॉलेशन) आदि।
हम मूर्तिकला में बाहरी और अंदरूनी मूर्तिकला के रूप में भी भेद कर सकते हैं। सजावट, उपासना तथा जीवन एवं चित्र आदि के लिए मूर्तिकला।