कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन पर बोले जयशंकर- आतंकवाद पर चाहिए ‘जीरो टॉलरेंस’

कजान,। विदेश मंत्री डॉ.एस.जयशंकर ने गुरुवार को कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन अवसर पर आयोजित आउटरीच-ब्रिक्स प्लस सत्र को संबोधित करते हुए किसी देश-विशेष का नाम लिए बगैर विस्तारवाद की सोच के साथ दुनिया में बढ़ते विवादों और आतंकवाद के मामले पर भारत के पक्ष को समूह के सामने रखा। उन्होंने कहा, विवादों और मतभेदों को बातचीत और कूटनीति के जरिए हल किया जाना चाहिए। विदेश मंत्रालय ने बताया कि विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि अगर समझौते हो जाएं तो उनका निष्ठापूर्वक ईमानदारी के साथ पालन करना चाहिए। बिना किसी अपवाद के अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुपालन के साथ आतंकवाद के खिलाफ कतई बर्दाश्त न करने यानी जीरो टॉलरेंस होनी चाहिए। कोरोना महामारी और विवादों ने वैश्विक दक्षिण के देशों पर दबाव बढ़ा दिया है। खाद्य-ऊर्जा और स्वास्थ्य सुरक्षा तीव्र गति से प्रभावित हुई है। भविष्य के सम्मेलन ने सतत विकास लक्ष्यों से पिछड़ने के मुद्दे को रेखांकित किया है। इस सत्र की मेजबानी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने की। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस समेत 20 से अधिक वैश्विक नेता और 30 से अधिक प्रतिनिधिमंडल इसमें शामिल हुए।   

पीएम की जगह पर हुए शामिल

मालूम हो कि पूर्व में ब्रिक्स के इस सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिरकत करनी थी। लेकिन देश में उनकी कुछ अन्य जरूरी घरेलू व्यस्तताओं के चलते वह बीते बुधवार रात ही रूस से भारत पहुंच गए थे। विदेश मंत्री ने प्रधानमंत्री के स्थान पर सम्मेलन में भाग लिया और उसे संबोधित किया। उनके बयान का इशारा बाकी दुनिया के अलावा चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की कुटिलताओं पर था।

दोहराया पीएम मोदी का शांति संदेश

मंत्रालय के मुताबिक, जयशंकर ने सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहु स्वीकृत और बहुचर्चित संदेश ‘यह युद्ध का युग नहीं है’ को दोहराते हुए कहा कि विवादों और तनाव से प्रभावशाली ढंग से निपटना ही आज के दिन की प्राथमिक आवश्यकता है। पीएम ने जोर देते हुए कहा था कि यह युद्ध का समय नहीं है और विवादों और मतभेदों का संवाद और कूटनीति के माध्यम से समाधान निकाला जाना चाहिए। समझौता होने पर उनका अनिवार्य रूप से सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही बिना किसी पूर्वाग्रह के वैश्विक कानूनों के पालन और आतंकवाद को बिलकुल स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

पश्चिम एशिया तनाव पर जताई चिंता

डॉ.जयशंकर ने इजरायल-ईरान युद्ध की वजह से मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया के हालातों को समूह के लिए चिंता का कारण बताया। उन्होंने कहा, दूर-दूर तक इस बात को लेकर तनाव है कि कहीं यह विवाद क्षेत्र में और अधिक न फैल जाए। समुद्री व्यापार पर इसका काफी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। विवाद बढ़ने के मानवीय और अन्य पहलू हकीकत में बेहद गंभीर हैं। कोई भी भूमिका दो राज्य समाधान की दिशा में साफ सुथरी और स्थायी होनी चाहिए। आज हम मुश्किल वक्त में मिल रहे हैं। जिसमें दुनिया को पुरानी चुनौतियों के बारे में नए अंदाज में सोचने के लिए तैयार होना चाहिए। ब्रिक्स में हमारी उपस्थिति इस बात का संदेश दे रही है कि हम ऐसा करने के लिए तैयार हैं। चुनौतियों से निपटने के लिए स्वतंत्र प्रकृति के मंचों को मजबूती देना, मौजूदा संस्थानों (यूएन), तंत्र में सुधार, अधिक उत्पादन केंद्रों की मदद, वैश्विक अर्थव्यवस्था का लोकतंत्रीकरण और नए अनुभवों व कदमों को साझा करना चाहिए।   

कनेक्टिविटी को चाहिए अन्य विकल्प

उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर की विकृतियां साम्राज्यवादी युग की विरासत हैं। दुनिया को तत्काल कनेक्टिविटी के और अधिक विकल्पों की आवश्यकता है। जिनसे लॉजिस्टिक को बढ़ावा मिले और जोखिम को कम किया जा सके। यह क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सर्वोच्च सम्मान के साथ सबकी भलाई के लिए किया जाने वाला सामूहिक प्रयास होना चाहिए। साम्राज्यवाद से आजाद हुए देशों में सामाजिक-आर्थिक विकास तेजी से जारी है। नई क्षमताएं, प्रतिभा उभर रही हैं। ये आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनर्संतुलन एक ऐसे बिंदु पर जा पहुंचा है, जहां हम वास्तविक बहुध्रुवीयता से मुकाबला कर सकते हैं। भूतकाल की कई असमानताएं हमारे साथ चल रही हैं। उदारीकरण का लाभ असमानता से भरा है।


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