इजरायल और लेबनान के बीच हुए संघर्ष विराम का भारत ने किया स्वागत

नई दिल्ली। इजरायल-लेबनान (हिजबुल्लाह) के मध्य बीते करीब एक साल से अधिक समय से जारी युद्ध के बीच अमेरिका और फ्रांस की मध्यस्थता से हुए संघर्षविराम समझौते की राष्ट्रपति जो.बाइडन द्वारा की गई घोषणा के बाद भारत ने इसका स्वागत किया है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत दोनों पक्षों के बीच हुए संघर्षविराम का स्वागत करता है। हम हमेशा से ही तनातनी खत्म करने, संयम बरतने और बातचीत व कूटनीति के रास्ते पर लौटने पर जोर देते रहे हैं। इस घटनाक्रम से हमें उम्मीद है कि व्यापक क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम होगी। 

मालूम हो कि इजरायल की कैबिनेट ने बीते मंगलवार 10-1 के वोट से लेबनान के साथ हुए संघर्षविराम समझौते को अपनी मंजूरी प्रदान की थी। इस वार्ता में हालांकि हिजबुल्लाह ने भाग नहीं लिया। लेकिन उसकी तरफ से लेबनान की संसद के अध्यक्ष नबीह बेरी शामिल हुए। संघर्षविराम के दौरान दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी बंद रहेगी। लेकिन इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ कर दिया है कि हिजबुल्लाह के किसी भी हमले के जवाब में कड़ी जवाबी कार्रवाई की जाएगी। उधर, बाइडन ने अपने बयान में कहा कि मेरे पास मध्य पूर्व के लिए एक अच्छी खबर है। मैंने इजरायल और लेबनान के प्रधानमंत्रियों से बातचीत की है। इसमें मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि दोनों ने हिजबुल्लाह के साथ चल रहे इस विनाशकारी संघर्ष को रोकने के लिए अमेरिका के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। नेतन्याहू ने ये भी कहा कि संघर्षविराम से उन्हें अब अकेले हमास पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा।  

जल्दबाजी करने से बचें नागरिक: लेबनान

संघर्षविराम के साथ ही दक्षिण बेरूत के दहिया में शुरू हुए पुनर्निर्माण कार्य के बीच लेबनान की सेना ने विस्थापित नागरिकों से देश लौटने में जल्दबाजी न करने और युद्ध ग्रस्त इलाकों से पूरी तरह से इजरायल की सेना के लौटने का इंतजार करने की अपील की है। लेबनान में ब्लू सीमा पर संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (यूनिफिल) के कुल करीब 10 हजार जवान तैनात हैं। इसमें भारतीय सेना के लगभग 600 जवान भी शामिल हैं। युद्ध के बीच यूनिफिल परिसर के करीब हुए हमले का भारत ने कड़ा विरोध किया था। सेना ने कहा था कि सभी पक्षों द्वारा संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। भारतीयों सहित अन्य देशों के सैनिकों की स्वदेश वापसी का निर्णय संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के द्वारा ही लिया जाएगा। जिसका भारत पूरी तरह से समर्थन करेगा।  

10 लाख से ज्यादा विस्थापित वापस लौटेंगे 

पिछले साल 7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर किए गए आतंकवादी हमले के बाद इस युद्ध की शुरुआत हुई थी। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गाजा पट्टी और उसके आसपास के इलाकों पर पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी किए गए आंकड़ों के हिसाब से युद्ध की वजह से लेबनान में साढ़े तीन हजार से अधिक लोग मारे गए और अब तक कुल करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। अमेरिका के हस्तक्षेप से हुए संघर्षविराम की घोषणा राष्ट्रपति जो.बाइडन ने वाशिंगटन डीसी में की। बाद में अमेरिका और फ्रांस ने एक साझा बयान में इसकी पुष्टि की। इसके बाद बड़ी तादाद में विस्थापितों ने स्वदेश वापसी की इच्छा जताई है।


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