ट्रेंचिंग ग्राउंड में मिट्टी डालने के नाम पर चार करोड़ निकाले
Apr 29, 2024
इंदौर नगर निगम में फर्जी फाइलों से किया मिट्टी घोटाला
भोपाल । प्रदेश की इंदौर नगर निगम में ट्रेंचिंग ग्राउंड में मिट्टी डालने के नाम पर चार करोड़ रुपए का घोटाला प्रकाश में आया है। कुछ फर्मों को बगैर काम किए ही ट्रेंचिंग ग्राउंड में मिट्टी डालने के नाम पर चार करोड़ रुपये का भुगतान नगर निगम से हुआ है। नगर निगम की जांच कमेटी ने इस फर्जीवाड़े को पकड़ा है। कागजों पर यह काम 2019-20 में करना बताया गया जबकि बिल 2022 में लगाए गए। कमेटी को यह जानकारी भी हाथ लगी है कि फर्जीवाड़े का खेल सिर्फ ड्रेनेज विभाग में ही नहीं बल्कि निगम कई अन्य विभागों में भी चल रहा था। इसमें निगम के कई अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आई है।
कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर मुख्य सचिव को भेज दी है। हालांकि इसके बुधवार तक जारी होने की बात कही जा रही है। फर्जीवाड़े में आडिट शाखा और लेखा शाखा की भूमिका पर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे। कमेटी की जांच में भी यह बात सामने आई कि ठेकेदारों ने नगर निगम में छोटे-छोटे काम कर पहले तो विश्वास जमाया और फिर बड़े-बड़े फर्जीवाड़ों को अंजाम दे दिया। आडिट शाखा में जूनियर आडिटर, सीनियर आडिटर, डिप्टी डायरेक्टर ने आंख मूंदकर इन फाइलों पर चेक्ड एंड ओके फार पेमेंट की टीप लगा कर इसे आगे बढ़ा दिया। फर्जीवाड़े में यह बात सभी फर्जी बिलों में एक जैसी है कि फर्जीवाडे को अंजाम देने वाले ठेकेदारों ने जिस समय का काम बताया उसके दो-ढाई वर्ष बाद फर्जी बिल प्रस्तुत किए।
खास बात यह कि नगर निगम के किसी जिम्मेदार अधिकारी ने यह जानने की कोशिश ही नहीं कि कि करोड़ों के भुगतान के लिए ठेकेदार फर्म ढाई वर्ष तक इंतजार क्यों कर रही है। वर्तमान में भी नगर निगम के कुछ ठेकेदार हैं जो दो-ढाई वर्ष बाद बिल प्रस्तुत करते हैं। इसका फायदा यह होता है कि काम पुराना होने से उसकी जांच नहीं हो पाती और वास्तविकता सामने नहीं आ पाती। नगर निगम के ड्रेनेज विभाग में काम करना हर ठेकेदार की पहली पसंद होती है। इसकी वजह है कि इस विभाग का ज्यादातर काम जमीन के भीतर होता है और इसकी वास्तविकता की जांच कर पाना आसान नहीं होता।
जमीन के भीतर ठेकेदार ने कितनी लाइन डाली है, किस गुणवत्ता के पाइप डाले हैं, चैंबर तय मापदंडों के मुताबिक बनाए हैं या नहीं, चैंबरों पर प्लास्टर किया है या नहीं, इन सबकी जांच की जिम्मेदारी इंजीनियरों की होती है लेकिन जब तक वे पहुंचते हैं तब तक ठेकेदार काम पूरा कर जमीन समतल कर चुका होता है। यह बात भी सामने आई है कि निगम के कई अधिकारियों ने खुद के ठेकेदार भी रख रखे हैं। निगम के बड़े काम इन्हीं ठेकेदारों को दिए जाते हैं।
चौकाने वाली बात यह है कि नगर निगम के इंजीनियर सुनील गुप्ता ने 16 अप्रैल को फर्जीवाड़े की एफआइआर एमजी रोड पुलिस थाने में की थी, लेकिन आरोपित फर्मों के कर्ताधर्ता को इसकी खबर तीन दिन पहले मिल चुकी थी। यही वजह है कि वे 13 अप्रैल को घरों पर ताला लगाकर शहर से बाहर जा चुके थे। उच्च स्तरीय कमेटी का गठन आज हो सकता है। इधर जांच कमेटी की रिपोर्ट मुख्य सचिव तक पहुंचने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि नगर निगम फर्जीवाड़े में उच्च स्तरीय कमेटी गठित की जा सकती है।