पांच लाख पौधे लगा कर भूल गया वन विभाग
Ags 10, 2024
भोपाल। राजधानी और उसके आसपास इस बार हरियाली महोत्सव के दौरान प्रशासन और वन विभाग ने मिलकर पांच लाख से अधिक पौधे लगाने का दावा ्िरया था लेकिन इनमें से अब आधे भी नजर नहीं आते हैं। जो हैं उनकी ीाी देखरेख के अभाव में हालत खराब होती जा रही है। उस समय कहा गया था कि पोधरोपण के ं 20 अलग-अलग प्रजातियों के पौधे होंगे लेकिन यहां पर तो यह नजर हीं नहीं आते हैं।
जंगलों के अतिक्रमण की भी नहीं हुई नपती
प्लान्टेशन के पहले शहर के आसपास के एरिया की सर्चिंग की गयी है। इसमें आने वाले अतिक्रमण की भी नपती की जा रही है और उसको हटाया जा रहा है। जिस एरिया में प्लान्टेशन होगा वहां के रहवासियों और लोकल स्टाप को उसके रखरखाव का भी ध्यान रखना होगा। नजीराबाद के जंगलों में कई जगहों पर अवैध खनन का भी मामला सामने आया है। इस तरफ भी ध्यान रखा जा रहा है। इस मामले में बाघ मित्रों की भी सहायता ली जाएगी जो जंगलों में होते अवैध खनन की जानकारी देंगे।
दूसरे विभागों ने नहीं की तैयारी
आमतौर पर प्लान्टेशन के लिये शहर में नगर निगम, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग द्वारा मिल कर काम किया जाता है लेकिन अभी तक किसी अन्य विभाग की कोई प्लानिंग सामने नहीं आयी है। हालत तो यह है कि जहां एक तरफ पौधरोपण की बात हो रही है हो दूसरी तरफ नगर निगम और पीडब्ल्यूडी विभाग पेड़ों की अवैध कटाई को लेकर एनजीटी के निशाने पर चल रहे हैं। इस संबंध में झील के किनारे होने वाले प्लान्टेशन की वर्किंग भी सामने नहीं आयी है।
अपनी बात
हॉट एरिया में माननीयों को जगह देने की वजह क्या ...
भोपाल। राजधानी में विधायकों, पूर्व विधायकों और सांसदो ंको हॉट एरिया में सस्ते मकान देने का काम सालों से राजधानी में चल रहा है लेकिन हाल ही में रचना टॉवर की घटना ने सरकार को घेरे में ला कर खड़ा कर दिया है। सवाल यह हैकि इन लोगों को हॉट एरिया में मकान, जगह और फ्लेट इसलिये दिये जाते हैं ताकि वह उनको किराये पर चलाये। वहां पर शराब के आफिसखुले। बेहतर यही होगा कि इनको जगह तो दी जाए लेकिन उस पर यह शतर् होनी चाहिए कि वह इसको न तो किसी को किराये पर देंगे और न ही बेंचेगे। तभी इनका बेहतर उपयोग हो पाएगा।
अभी क्या हाल है ..
अभी तो यह हाल है कि माननीयों के नाम पर जगह देने के बाद उसका कमर्शियल उपयोग होने लगता है और उस तरफ किसी की नजर नहीं पड़ती है। यह हाल जवाहर चौक के एमएलए क्वाटर्स को देखा जा सकता है जहां पर आज डाक्टरों की कमर्शियल जोन नजर आती है। तकरीबन यहां के सभी प्लाटों और मकानों को माननीयों ने उऊंचे दामों पर बेंच दिया है। इसी तरह से सरकार ने इन लोगोंं के लिये रिवेयरा टाउन शिप में भी मकान आरक्षित किये थे।
गरीब नहीं बेच सकता तो यह क्यों
प्रदेश में बनने वाले पीएम हाउसिंग फार आॅल के मकानों को देते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह इसमें न तो किरायेदार रख सकते हैं और न ही इसको बेंच सकते हैं। मतलब साफ है कि सरकार उनको जो सहूलियत और सुविधा दे रही है वह उनके रहने के लिये है न कि व्यापार करने की। पर लोगों ने वहां पर दान का रास्ता निकाल लिया है। उस तरफ भी कोई जांच नहीं करता है। सवाल यह है कि अगर माननीयों के नाम पर इसी तरह से जमीनों का खेल होता रहेगा तो फिर आम आदमी के लिये जगह कहां से बच पाएगी। नियम तो सभी के लिये एक होने चाहिए। चाहे वह जनता हो या जनप्रतिनिधि।