दिल्ली की कास्ट पॉलिटिक्स पूर्वांचली-पंजाबी-जाट और वैश्य के हाथ होगी सत्ता की चाबी

Dec 12, 2024

नई दिल्ली । दिल्ली विधानसभा चुनावों की सरगर्मी तेज हो चली है, तमाम राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारी में लगे हुए हैं। दिल्ली चुनाव में पार्टियां जातिगत समीकरण बनाने में भी लगी हुई हैं। दिल्ली में पूर्वांचली, पंजाबी, वैश्य और जाट मतदाताओं के हाथ सत्ता की चाबी है, तो उत्तराखंडी, ब्राह्मण और दलित वोटर भी अहम भूमिका में है। दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है। आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा शुरू कर दी है तो बीजेपी और कांग्रेस सत्ता में वापसी का तानाबाना बुन रही है। सियासी पार्टियां भले ही कहें कि वे जातिगत आधार पर चुनाव ना लड़ रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि टिकटों के बंटवारे से लेकर वोट मांगने तक में जातियों के समीकरण बेहद मजबूत माने जाते हैं। ऐसे में दिल्ली के कास्ट पॉलिटिक्स से ही सत्ता की दशा और दिशा तय होती है।

जिसके लिए बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने-अपने सियासी समीकरण सेट करने में जुटी है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों का सियासी मिजाज एक तरह से नहीं है बल्कि हर सीट का अपना सियासी समीकरण है। सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए पार्टियां अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है। इसी तैयारी का अहम हिस्सा है मतदाताओं का जातीय समीकरण। पिछले तीन विधानसभा चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो पता चलता है कि पूर्वांचली, पंजाबी, वैश्य और जाट मतदाताओं के हाथ सत्ता की चाबी है तो उत्तराखंडी, ब्राह्मण और दलित वोटर भी अहम भूमिका में है। दिल्ली के जातीय समीकरण और धार्मिक समीकरण की अपनी सियासी अहमियत है। धार्मिक आधार पर देखें तो कुल 81 फीसदी हिंदू समुदाय के वोटर हैं। इसके अलावा 12 फीसदी मुस्लिम, 5 फीसदी सिख और करीबन एक-एक फीसदी ईसाई व जैन समुदाय के मतदाता हैं। वहीं, जातीय और क्षेत्रीय आधार पर देखें तो दिल्ली में 25 फीसदी वोटर पूर्वांचली हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग दिल्ली में रहते हैं तो 22 फीसदी के करीब पंजाबी वोटर हैं, जिसमें 10 फीसदी पंजाबी खत्री वोटर भी शामिल हैं। जाट और वैश्य 8-8 फीसदी हैं तो ब्राह्मण 10 फीसदी और दलित वोटर 17 फीसदी के करीब है। इसके अलावा गुर्जर 3 फीसदी, यादव 2 फीसदी और राजपूत एक फीसदी। उत्तराखंडी वोटर करीब 6 फीसदी हैं।


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